Manav Jaati Ka Sanyukt Dharm : Islam-मानव जाति का संयुक्त धर्म : इस्लाम- By-IERO

इस्लाम किसी एक जाति या एक देश का धर्म नही, यह मानव जाति का संयुक्त धर्म हैं। र्इश्वर की ओर से संसार में जितने धर्म नेता और धर्म शिक्षक आए उन सबका एकमात्र आदेश यही था कि र्इश्वर को मानो, उसी को पूजो और उसी की आज्ञाओं पर चलो।



कुरआन मे खुदा कहता है-
‘‘हमने तुमसे पहले जितने भी रसूले भेजे उनको यही आदेश दिया कि मेरे सिवा कोर्इ पूज्य प्रभु नही अत: तुम मेरी ही बन्दगी करो।’’
(कुरआन,21:25)
‘‘निस्सन्देह हमने हर समुदाय मे रसूल (सन्देष्टा) भेजे जिन्होने यही आदेश दिया कि लोगो! अल्लाह ही की बन्दगी और आज्ञा का पालन करो और उन लोगो से अलग रहो जो सीमा उल्लंघन करके र्इश्वर की जगह स्वंय अपनी पूजा और आज्ञापालन कराते हैं’’ 
(कुरआन, 16:36)
कुरआन के मतानुसार ऐसे धर्म और नेता और पथ प्रदर्शक हर जाति में आए-
‘‘हर उम्मत (समुदाय) के लिए एक रसूल हैं।’’
(कुरआन, 10:47)
‘‘कोर्इ ऐसा समुदाय नहीं जिसमें (कुमार्ग के परिणाम से) सचेत करनेवाला न आया हो।’’
(कुरआन, 35:24)
‘‘(ऐ मुहम्मद!) तुम केवल कुमार्ग के परिणाम से सचेत करनेवाले हो और इसी प्रकार हर जाति में पथ प्रदर्शक आ चुके हैं।’’
(कुरआन, 13:7)
कुरआन के इन कथनों के अनुसार संसार के सारे देशों में, जिसमें भारत भी है, खुदा के रसूल (र्इश-दूत) आए और सब उसी धर्म के प्रचारक और शिक्षा देनेवाले थे जिसे कुरआन इस्लाम कहता है, अर्थात र्इश्वर की भक्ति और आज्ञापालन का धर्म। विभिन्न देशो और जातियों मे भेजे जानेवाले र्इशदूतो की शिक्षा-विधि अवश्य भिन्न थी। जिस जाति मे जैसी आज्ञानता और भ्रष्टता थी उसको उसी के अनुसार शिक्षा दी गर्इ और उसमें सुधार की वैसी ही नीति ग्रहण की गर्इ, परन्तु यह भेद उपरी था, सबकी शिक्षा की आत्मा वही एक थी, र्इश-भक्ति और उसका आज्ञापालन।
इस आधार पर मुसलमानों के लिए इस बात पर विश्वास रखना अनिवार्य हैं कि भारत समेत पूरी दुनिया में खुदा के रसूल या र्इशदूत आए और उनके द्वारा र्इश्वरीय पुस्तके भी आर्इ। भारत के जिन महापुरूषों को लोग र्इशदूत मानते हो उसके विरूद्ध मुसलमानों को कुछ कहने का अधिकार नही हैं, क्योकि हो सकता हैं कि वास्तव में वे र्इशदूत ही रहे हो, काल परिवर्तन से उनकी शिक्षाओं में परिवर्तन हो गया हो।
सरांश यह कि न हजरत मुहम्मद साहब (सल्ल0) ने कभी यह दावा किया कि केवल एक वही खुदा के रसूल हैं न कुरआन ने यह कहा कि वही एक र्इश्वरीय ग्रन्थ हैं, हजरत मुहम्मद (सल्ल0) यही बताया कि इस्लाम मानव जाति का संयुक्त धर्म है और र्इश्वर के समस्त दूत और सारे र्इश्वरीय ग्रंथ इसी की शिक्षा दे रहे हैं।
इसी लिए कुरआन कहता हैं
‘‘नि:सन्देह अल्लाह के निकट इस्लाम (र्इश आज्ञापालन) ही सत्य धर्म और सत्य जीवन विधान हैं।’’ (कुरआन, 3:19)
और एक जगह कहता हैं-
‘‘उससे अच्छा कथन और किसका हो सकता हैं जिसने लोगो को अल्लाह की तरफ बुलाया, अच्छे कर्म किए और कहा कि मैं (अल्लाह की) आज्ञा का पालन करनेवाला हू। (कुरआन, 41:33)
हजरत मुहम्मद पर र्इश्वर की दया और कृपा हो। वह सारे र्इश्वरीय सन्देश दाताओं के प्रतिनिधि और अन्तिम सन्देशदाता थे और कुरआन अन्तिम र्इश्वरीय ग्रंथ और सारे र्इश्वरीय ग्रंथो का प्रतिनिधि और सार हैं।
हजरत मुहम्मद (सल्ल0) और कुरआन की शिक्षा के अतिरिक्त संसार में र्इश्वर के किसी सन्देष्टा और किसी र्इश्वरीय ग्रंथ की शिक्षा पूर्ण और वास्तविक रूप में विद्यमान नही हैं। जो लोग र्इश्वरीय धर्म के अनुसार जीवन व्यतीत करना चाहे उनके लिए हजरत मुहम्मद (सल्ल0) और कुरआन की शिक्षाओं को मानने के सिवा और कोर्इ मौजूद नही है।

इस्लाम, क़ुरआन या ताज़ा समाचारों के लिए 
Courtesy of IERO
Admin
Admin

. Welcome to my blog! I'm ISHTIYAQUE SUNDER, the owner and author. Here, I explore the wisdom of Hadith, delve into Islamic teachings, and bridge the gap between faith and science. Join me on this journey of knowledge, where tradition meets modernity, and spirituality aligns with scientific inquiry." if you like my article Share my article |Comment on my article | hit LIKE also | Thank you

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

You May Also Like

loading...