हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नमाज़
अल्लाह तआला का प्यार भरा खिताब हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से है कि आप रात के बड़े हिस्से में नमाज़े तहज्जुद पढ़ा करें। “ऐ चादर में लिपटने वाले! रात का थोड़ा हिस्सा छोड़ कर बाक़ी रात में (इबादत के लिए) खड़े हो जाया करो। रात का आधा हिस्सा या आधे से कुछ कम या उससे ज़्यादा और क़ुरान की तिलावत इतमिनान से साफ साफ किया करो।” (सूरह मुज़्ज़म्मिल 1-4) इसी तरह सूरह मुज़्ज़म्मिल की आखिरी आयत में अल्लाह तआला फरमाता है “(ऐ पैगम्बर!) तुम्हारा परवरदिगार जानता है कि तुम दो तिहाई रात के क़रीब और कभी आधी रात और कभी एक तिहाई रात (तहज्जुद नमाज़ के लिए) खड़े होते हो और तुम्हारे साथियों (सहाबा-ए-किराम) में से भी एक जमाअत (ऐसा करती है)।”
इब्तिदाए इस्लाम में पांच नमाजों की फर्ज़ियत से पहले तक नमाज़े तहज्जुद हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और तमाम मुसलमानों पर फर्ज़ थी,चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा-ए-किराम रात के एक खास हिस्सेमें नमाज़े तहज्जुद पढ़ा करते थे। पांच नमाजों की फर्ज़ियत के बाद नमाज़े तहज्जुद की फर्ज़ियत तो खत्म हो गई मगर इसका इस्तिहबाब बाक़ी रहा, यानी अल्लाह और उसके रसूल ने बार बार उम्मते मुस्लिमा को नमाज़े तहज्जुद पढ़ने की तरगीब दी, चुनांचे क़ुरान करीम में फर्ज़ नमाज़ के बाद नमाज़े तहज्जुद का ही ज़िक्र बहुत मरतबा आया है। उलमा की एक जमाअत की राय है कि पांच नमाजों की फर्ज़ियत के बाद नमाज़े तहज्जुद आम मुसलमानों के लिए तो फर्ज़ न रही लेकिन हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर आखिरी वक़्त तक फर्ज़ रही।
हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रात को क़याम फरमाते, यानी नमाज़े तहज्जुद अदा करते यहां तक कि आपके पांव मुबारक में वरम आ जाता। (सही बुखारी) ज़ाती तजरबात से मालूम होता है कि एक दो घंटे नमाज़ पढ़ने से पैरों में वरम नहीं आता है बल्कि रात के एक बड़े हिस्से में अल्लाह तआला के सामने खड़े होने, तवील रुकू और सजदा करने की वजह से वरम आता है, चुनांचे सूरह बक़रह और सूरह आले इमरान जैसी लम्बी लम्बी सूरतें आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक रिकात में पढ़ा करते थे और वह भी बहुत इतमिनान व सुकून के साथ।
सूरह मुज़्ज़म्मिल की इब्तिदाई आयात, आखिरी आयत, मज़कूरा और दूसरे अहादीस से बखूबी अंदाजा लगाया जा सकता है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रात का दो तिहाई या आधा या एक तिहाई हिस्सा रोज़ाना नमाज़े तहज्जुद पढ़ा करते थे। नमाज़े तहज्जुद के अलावा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पांच फर्ज़ नमाजें भी खुशू व खुज़ू के साथ अदा करते थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सुनन व नवाफिल, नमाज़े इशराक़, नमाज़े चाशत,तहिय्यतुल वज़ू और तहिय्यतुल मस्जिद का भी एहतेमाम फरमाते और फिर खास मौक़ों पर नमाज़ ही के ज़रिया अल्लाह तआला से रुजू फरमाते। सूरज गरहन या चांद गरहन होता तो मस्जिद तशरीफ ले जा कर नमाज़ में मशगूल हो जाते। कोई परेशानी या तकलीफ पहुंचती तो मस्जिद का रुख़ करते। सफर से वापसी होती तो पहले मस्जिद तशरीफ ले जा कर नमाज़ अदा करते और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इतिमान व सुकून के साथ नमाज़ पढ़ा करते थे।
गरज़ ये कि हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तक़रीबन 8 घंटे नमाज़ जैसी अजीमुशशान इबादत में गुज़ारते थे। नमाज़ के मुतअल्लिक़ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिदे नबवी के मुअज़्ज़िन हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाते “ऐ बिलाल! उठो, नमाज़ का बन्दोबस्त करके हमारे दिल को चैन और आराम पहुचांओ।”यानी नमाज़ से हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सुकून मिलता था। हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आखिरी वसीयत भी नमाज़ पढ़ने के मुतअल्लिक़ है। अल्लाह तआला ने हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को रहमतुल लिल आलमीन बना कर भेजा है, इसलिए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी उम्मत की तकलीफों को बहुत फिक्र करते थे मगर नमाज़ में सुस्ती व काहिली करने वाले के मुतअल्लिक़ हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इरशादात बहुत सख्त हैं, हत्ताकि इन इरशादात की रौशनी में उलमा की एक जमाअत की राय है कि जानबूझ कर नमाजें छोड़ने वाला काफिर है, अगरचे जमहूर उलमा के मौक़िफ के मुताबिक़ ऐसा शख्स काफिर नहीं बल्कि फासिक़ व गुनाहगार है।
इंतिहाई अफसोस व फिक्र की बात है कि आज हम नबी रहमत का नाम लेने वाले हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आंखों की ठंडक यानी नमाज़ पढ़ने के लिए भी तैयार नहीं हैं जिस में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी क़ीमती ज़िन्दगी का वाफिर हिस्सा लगाया।
नमाज़ पढ़िए इसके कि आप की नमाज़ पढ़ी जाए। अल्लाह तआला हम सबको नमाज़ का एहतेमाम करने वाला बनाए, आमीन।
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