भारत देश में सबसे पुराना धर्म कहलाया जाने वाला हिंदू धर्म जो आजकल देश में हो रहे हो-हल्ले के लिए भी मशहूर हो रखा है। खुद को को शांति का प्रतीक बताने वाले इस धर्म में कोई कमी नहीं है अक्सर ऐसा ही लगता है हिन्दू धर्म की तूती बजाते फिर रहे धर्म के ठेकेदार बने फिर रहे हिन्दू संगठनों को। लेकिन सोचने वाली बात है कि जो धर्म जानवरों के साथ रंगभेद और नस्लभेद कर सकता है उसके साथ क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि वो इंसानों के लिए दिल में दया-भाव रखे। अक्सर आपने सुना होगा कि माँ का दर्जा कोई ओर नहीं ले सकता। हमें इस जीवन में लाने वाली माँ की तुलना हम किसी से नहीं कर सकते। लेकिन हमारे हिंदू धर्म को देखिये
जिसमें माँ की तुलना जानवर के साथ की जाती है और उस मासूम जानवर को तो मालूम भी नहीं होगा की उसके नाम पर कितनी मौतें, कितने दंगे उसे माँ बताने वाले भक्त कर रहे हैं।
एक हिन्दू होने के नाते मैंने भी बचपन में सुना था कि गाय हमारी माँ है। लेकिन मुझे यह पढ़ाने वाले माँ-बाप से मैं आज यह सवाल आँखों ही आँखों में जरूर पूछने की कोशिश करती हूँ कि आपकी कोख से पैदा हुई मैं एक जानवर को माँ कैसे मान सकती हूँ? माना कि गाय नाम का यह जानवर हमें दूध देता है जो पचने में हल्का और सेहत के लिए अच्छा होता है लेकिन थोड़ा दाएं बाएं नज़र घुमाएं तो दूध देने वाले और पशु जैसे भैंस, बकरी और भेड़ें भी तो दूध देने वाले पशु हैं इन्हें क्यों नहीं पूजा जाता? हिन्दू लोग गुणगान तो करते है गाय का लेकिन पीते हैं भैंस का दूध। जिसका दूध पीते हैं और जिसके दूध से बनी चीज़ें खाते हैं उसके नाम का कहीं ज़िक्र भी नहीं किया जाता। अक्सर हमने गाय की लेख तो सुना है लेकिन भैंस,भेड़ और बकरी का तो नहीं। खुद को पूर्ण और पवित्र बताने वाले इस धर्म में जानवरों से इतना भेद-भाव क्यों भला? आज भले ही गाय को माता बुलाते हों लेकिन शायद एक दिन ऐसा आ जाए जब इस मासूम जानवर को कातिल बुलाया जाए। जी हाँ जिस कगार पर इन हिन्दू संगठनों ने गाय को लाकर रख दिया ऐसा होना कोई हैरानी की बात नहीं है।
आज के वक़्त में गाय के नाम पर हजारों जानें जा रही हैं एक मासूम जानवर को राजनीति की डगर पर बिना घास खिलाये घसीटा जा रहा है और उसके जीने मारने के मायने ही बदल कर रख दिए हैं। ज़िंदा हो या मरी हुई; गाय के नाम पर लड़ाई, मारपीट, दंगे-फसाद आज कल आम हो गया है। लेकिन हैरानी की बात ये है की जानवर के नाम पर लोग मर रहे जिसका सरकार को कोई फर्क नही पड़ रहा।
जहाँ देखो आज गाय का ही बोलबाला है। ऐसा लग रहा है रहा जैसे आज की सरकार गाय के आसरे ही चल रही हो। जब भी सरकार जनता का ध्यान देश के असली मुद्दों और समस्याओं से भटकाना चाहती है। हमेशा गाय का इस्तेमाल करती है। जिसके लिए निशाने पर रखा जाता है दलितों को या फिर मुसलमानों को। दादरी काण्ड में मारे गए अख़लाक़ गुजरात में बांधकर पीटे गए दलित युवकों का वाक़या तो इस कहानी का ट्रेलर भर है। गायke नाम पर देश के दलित और मुस्लमान बलि चढाये जा रहे हैं। सरेआम हो रहे इस कत्लेआम को देख कर भी अनदेखा कर रही सरकार गोमांस के एक्सपोर्ट पर क्यों रोक नही लगा रही। ये भला कैसा गोप्रेम हुआ जिसमें देश के लोगों के लिए गौमाता को बैन करदो और बाकी की दुनिया के लिए बिरयानी बनाकर खाने के लिए छोड़ दो। ऐसे में तो हमारी समझ में यही आता है कि मसला यहाँ गाय का नही बल्कि दलितों और मुसलमानों का है!!!
प्रियंका रानी
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