सऊदी अरब ने कामगारों की अपनी नीति में कुछ परिवर्तन किये हैं । सऊदी में तेजी से फ़ैल रहे रिटेल व्यवसाय में स्थानीय ( सऊदी ) के लोगों को अधिक प्राथमिकता दी जा रही है । सिर्फ रिटेल ही नहीं हाऊसिंग और व्यावसायिक निर्माण में भी काम के बड़े कॉन्ट्रेक्ट स्थानीय फर्मो को दिए जा रहे हैं तथा सिर्फ छोटे कॉन्ट्रेक्ट ही आउटसोर्स किये जा रहे हैं ।
इस बदलाव का एक बड़ा कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की गिर रही कीमतों और निर्माण क्षेत्र में भारी सुस्ती से हिली सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था हैं। काम की कमी और मंदी के चलते भारतीय कामगारों के भी बुरे दिन शुरू हो गए हैं । कई कम्पनियों में कामगारों को पिछले तीन चार माह से वेतन नहीं मिला है। हजारों कामगार बेरोजगार हो गए हैं और वतन वापसी कर रहे हैं।
सस्ते कच्चे तेल और यमन के साथ पिछले एक साल से चल रहे युद्ध के कारण आर्थिक मंदी का शिकार हुए दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पाद देश सउदी अरब में निर्माणाधीन बड़े-बड़े प्रोजेक्टों पर ब्रेक लग गया है। हज यात्रा के दौरान मक्का में हुए क्रेन हादसे के कारण सऊदी सरकार पहले ही सउदी बिन लादेन जैसी नामी कंस्ट्रक्शन कंपनी पर ताला जड़ चुकी है। इस कंपनी से 20 हजार भारतीय वापस भेज दिए गए हैं।
सरकारी प्रोजेक्टों का ठेका लेने वाली कंपनी सऊदी ओजर इन दिनों अपने कामगारों को पगार तक नहीं दे पा रही है। कभी सऊदी ओजर कंपनी का डंका बजा करता था। इस कंपनी ने 185 भारतीय ड्राइवर भारत वापस भेज दिए। युकसिल कंपनी से लौटे जालंधर के नौजवान कुलदीप सिंह ने बताया कि उन्होंने कंपनी में बतौर ट्राला ड्राइवर काम किया और बहुत अच्छी कमाई की, लेकिन आजकल सऊदी अरब में आर्थिक हालात ठीक नहीं है। कंपनियां बेसिक सैलरी भी नहीं दे पा रही है। इसलिए वहां सेे छटनी शुरू हो गई है। कुलदीप ने बताया कि उनकी कंपनी ने 185 ड्राइवर वापस भेज दिए हैं। अगले हफ्ते उनकी कंपनी से 200 से अधिक और ड्राइवर भारत आ रहे हैं। इनमें अधिकतर पंजाब से हैं।
गौरतलब है कि अरब देशों में सऊदी अरब ही मात्र ऐसा देश है जहां
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